दिल की बातें
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ठोकिया को लोकतंत्र रास आने लगा है,
प्रजातंत्र को सर्वोत्तम बताने लगा है।
जब से जुड़ गए हैं सियासत से तार उसके,
बेपरवाह मछलियां फंसाने लगा है।
शाम होने का भला इंतजार क्यों करता,
दिन-दोपहर ही करतब दिखाने लगा है।
वजीर-ए-आजम से आम है रिश्तों का जिक्र,
खाकी-खादी को भी अब ह़ड़काने लगा है।
जंगल से निकलकर शेर हो गया है पूरा,
बाघ-चीते को मेमना बताने लगा है।
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